परिचय
अफगानिस्तान का राजनीतिक परिदृश्य अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से लगातार चर्चा में है। दुनिया के ज़्यादातर देशों ने तालिबान शासन को औपचारिक मान्यता देने में हिचक दिखाई है, लेकिन भू-राजनीतिक वास्तविकताओं ने सभी को किसी न किसी स्तर पर संवाद करने के लिए मजबूर किया है। भारत भी अपवाद नहीं है। लंबे समय तक सावधानीपूर्वक दूरी बनाए रखने के बाद, अक्टूबर 2025 में भारत ने एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक कदम उठाया — काबुल में अपने तकनीकी मिशन को पूर्ण एम्बेसी में अपग्रेड करने का निर्णय लिया। साथ ही, तालिबान के कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी की भारत यात्रा ने संबंधों को नई दिशा दी।
भारत और अफगानिस्तान: ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
भारत और अफगानिस्तान के संबंध ऐतिहासिक रूप से गहरे रहे हैं। सांस्कृतिक, व्यापारिक और रणनीतिक दृष्टि से दोनों देश एक-दूसरे के साझेदार रहे हैं। 2001 से 2021 के बीच भारत ने अफगानिस्तान में सड़कों, बांधों, स्कूलों और अस्पतालों का निर्माण कराया। लेकिन 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद, भारत को अपने दूतावास बंद करने पड़े और अफगान नीति पर पुनर्विचार करना पड़ा। तीन साल की सावधानीपूर्ण दूरी के बाद, भारत ने अब संवाद और कूटनीतिक मौजूदगी को पुनर्जीवित करने का फैसला किया है।
हालिया घटनाक्रम
- भारत ने घोषणा की कि काबुल मिशन को अपग्रेड कर पूर्ण दूतावास बनाया जाएगा। यह संकेत है कि भारत तालिबान शासन के साथ सीधे और स्थायी संवाद को प्राथमिकता देना चाहता है।
- अफगान विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी ने पहली बार भारत का दौरा किया। यह यात्रा न केवल प्रतीकात्मक थी, बल्कि व्यावहारिक चर्चाओं से भी भरपूर रही।
- मुलाक़ातों में व्यापार, स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा और वाणिज्यिक मार्गों जैसे विषय प्रमुख रहे।
- दोनों पक्षों ने आतंकवाद और क्षेत्रीय अस्थिरता पर चिंता जताई और अफगान भूमि को किसी भी प्रकार की भारत-विरोधी गतिविधियों से मुक्त रखने पर बल दिया।
भारत की रणनीतिक प्राथमिकताएँ
भारत के लिए अफगानिस्तान सिर्फ़ एक पड़ोसी देश नहीं है, बल्कि एक महत्वपूर्ण सुरक्षा और व्यापारिक हितों से जुड़ा क्षेत्र है। पाकिस्तान की भूमिका और चीन के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए भारत चाहता है कि उसकी मौजूदगी अफगानिस्तान में बनी रहे। भारत की रणनीतिक प्राथमिकताओं को निम्न बिंदुओं में समझा जा सकता है:
- सुरक्षा: भारत की सबसे बड़ी चिंता है कि अफगान धरती का इस्तेमाल भारत विरोधी आतंकी समूहों द्वारा न किया जाए। तालिबान से सीधे संवाद करके भारत इस खतरे को कम करने का प्रयास कर रहा है।
- व्यापार और कनेक्टिविटी: अफगानिस्तान भारत के लिए मध्य एशिया और उससे आगे के बाजारों तक पहुँच का मार्ग हो सकता है। चाबहार पोर्ट और अट्टारी-वाघा मार्ग को सक्रिय करना इस दिशा में अहम कदम हो सकता है।
- मानवीय सहायता: भारत ने अतीत में अफगान जनता को शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे में मदद दी है। वर्तमान समय में भी दवाइयाँ और खाद्य सामग्री भेजना जारी है।
- क्षेत्रीय संतुलन: पाकिस्तान के प्रभाव को संतुलित करने के लिए भारत का अफगानिस्तान में उपस्थित रहना ज़रूरी है।
तालिबान की अपेक्षाएँ
तालिबान के लिए भारत के साथ संबंध कई कारणों से महत्वपूर्ण हैं। एक ओर उन्हें अंतरराष्ट्रीय मान्यता और वैधता की तलाश है, दूसरी ओर व्यापार और निवेश की भी ज़रूरत है। मुत्तकी के दौरे में तालिबान ने भारत से निम्न अपेक्षाएँ रखीं:
- तालिबान शासन की औपचारिक मान्यता।
- व्यापारिक मार्गों को खोलने और सुगम बनाने में सहयोग।
- चिकित्सा यात्रा और शिक्षा के लिए वीज़ा प्रक्रियाओं को सरल बनाना।
- चाबहार पोर्ट को अफगान व्यापारियों के लिए और अधिक उपयोगी बनाना।
घरेलू और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
भारत में इस कदम पर मिश्रित प्रतिक्रियाएँ देखने को मिलीं। कुछ राजनीतिक दलों और नागरिक संगठनों ने तालिबान के मानवाधिकार रिकॉर्ड को देखते हुए आलोचना की। विशेषकर महिलाओं और लड़कियों की शिक्षा पर प्रतिबंध भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के लिए चिंता का विषय है। दूसरी ओर, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि व्यावहारिक जुड़ाव ही अफगान जनता के हित में है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का यह कदम “प्रैगमैटिक” यानी व्यावहारिक माना जा रहा है। अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे देश भी तालिबान से औपचारिक मान्यता देने से पहले सावधानी बरत रहे हैं, लेकिन मानवीय और सुरक्षा कारणों से संपर्क बनाए हुए हैं। भारत का दृष्टिकोण भी इसी लाइन पर है।
संभावित लाभ
यदि भारत और तालिबान के बीच यह संवाद जारी रहता है, तो इसके कई लाभ हो सकते हैं:
- भारत को अफगानिस्तान की जमीनी स्थिति पर बेहतर जानकारी मिलेगी।
- व्यापार और चिकित्सा यात्रा से दोनों देशों के आम नागरिकों को लाभ होगा।
- क्षेत्रीय स्थिरता और सुरक्षा पर सकारात्मक असर पड़ सकता है।
- भारत को मध्य एशिया तक पहुँचने का नया अवसर मिलेगा।
संभावित चुनौतियाँ
हालाँकि इस प्रक्रिया में कई चुनौतियाँ भी हैं:
- मानवाधिकार: तालिबान शासन में महिलाओं और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की स्थिति चिंता का विषय बनी हुई है।
- अंतरराष्ट्रीय दबाव: UN और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों की पाबंदियाँ भारत के लिए नीति-निर्धारण को जटिल बना सकती हैं।
- पाकिस्तान कारक: पाकिस्तान हमेशा से अफगानिस्तान में गहरी भूमिका निभाता रहा है। भारत के बढ़ते प्रभाव से क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा बढ़ सकती है।
- आंतरिक राजनीति: भारत में तालिबान से संवाद पर आलोचना और समर्थन दोनों मौजूद हैं। इससे नीति पर असर पड़ सकता है।
भविष्य की दिशा
भारत और तालिबान के बीच यह संवाद अगले कुछ वर्षों में कई रूप ले सकता है। यदि तालिबान अपनी नीतियों में नरमी दिखाते हैं और अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन करते हैं, तो भारत औपचारिक मान्यता की दिशा में भी कदम बढ़ा सकता है। लेकिन यदि मानवाधिकार उल्लंघन जारी रहते हैं, तो भारत केवल व्यावहारिक सहयोग तक ही सीमित रह सकता है।
निष्कर्ष
भारत-तालिबान संबंधों में अक्टूबर 2025 एक अहम मोड़ साबित हुआ है। भारत ने अपनी कूटनीतिक उपस्थिति को मज़बूत करने का फैसला किया है और तालिबान भी भारत से गहरे जुड़ाव की इच्छा जता रहे हैं। यह प्रक्रिया आसान नहीं है, लेकिन व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाकर भारत अपने सुरक्षा, व्यापार और मानवीय हितों को संतुलित करने की कोशिश कर रहा है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह संबंध औपचारिक मान्यता तक पहुँचते हैं या केवल रणनीतिक संवाद तक ही सीमित रहते हैं।
नोट: यह लेख अक्टूबर 2025 में भारत-तालिबान संबंधों से जुड़ी ताज़ा घटनाओं और उनके संभावित प्रभावों का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करता है।